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उपकार के बदले अत्याचार -(कविता-पर्यावरण दिवस, 5-6-2012)

Contemporary Thoughts
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पर्यावरण हमेशा रहा है हमारा मित्र,

पर हमने बिगाड़ दिया है उसका चित्र |


पर्यावरण ने मनुष्य को दिया प्राकृतिक सम्पदा का उपहार,

पर बदले में मनुष्य ने पर्यावरण पर किया अत्याचार |

मनुष्य ने अपने स्वार्थ में पर्यावरण की धरोहर का किया तिरस्कार,

इसकी वजह से आज मनुष्य खुद हो रहा है बेबस और लाचार ।


पर्यावरण ने हमें दिया नदियों, झरनों, झीलों का शुद्ध पानी,

पर हमने उसको प्रदूषित करके कर डाली अपनी ही हानि ।

नदियों को नाला बना दिया, भूमिगत जल को सुखा दिया,

मनुष्य के अन्धे स्वार्थ ने उसे पीने के शुद्ध पानी को भी तरसा दिया ।


पर्यावरण के आभूषण – पेड़ों, वनों, जंगलों को काट दिया गया,

सांस लेने के लिए मिली हवा को भी जहरीला बना दिया गया ।

प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन किया गया,

भ्रष्टाचार के खेल में पर्यावरण को भुला दिया गया ।

विभिन्न जीव जन्तु भी हैं पर्यावरण के अंग,

पर बढ़ते प्रदूषण ने उनका जीवन किया बेरंग ।

गौरैया, गिद्ध, अन्य  पक्षी,जलीय जन्तु समाप्ति की ओर हैं अग्रसर,

मनुष्य भी इसके प्रभाव से नहीं है बेअसर ।


पर्यावरण का सन्तुलन यदि ऐसे ही बिगड़ता रहेगा,

मनुष्य के जीवन पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता रहेगा ।

आज पीने को शुद्ध पानी नहीं, सांस लेने को स्वच्छ हवा नहीं,

प्रदूषण से मनुष्य को ऐसे रोग मिले, जिनकी दवा नहीं ।


पर्यावरण का प्रदूषण और  शोषण रुकना चाहिए,

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी को जागरूक होना चाहिए ।


————————————————————————————————————————-

नम्र निवेदन —

चिलचिलाती गर्मी में पशु पक्षी भी हैं बेहाल और प्यास से व्याकुल,

अपनी बालकनी, छत,  गली आदि में पानी का बर्तन रखकर

असहाय जीवों की जान बचाएं ।

जीव दया कर अक्षय पुण्य कमायें           ——- धन्यवाद

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